इससे तो बेहतर था धरातल में समा जाती नदी PRAKRITI DARSHAN क्या आखिरकार अब स्वीकार कर लिया जाना चाहिए कि हमारी मानवीयता की सामूहिक हार हो चुकी है, हम वैचारिक तौर पर हार चुके हैं, हम...
जून अंक का विषय- वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन, हांफता सिस्टम PRAKRITI DARSHAN जून अंक का विषय- वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन, हांफता सिस्टमराष्ट्रीय मासिक पत्रिका प्रकृति दर्शन का जून अंक का विषय- ऑक्सीजन (घटती ऑक्सीजन, घुटता दम, बेदम सिस्टम,...
नाविक (लघुकथा) PRAKRITI DARSHAN लघुकथा...।एक नाव थी, लोगों को आराम से लाने ले जाने का काम करती थी, सभी उस नाविक के कम बोलने. पर अक्सर तंज कसा करते...
जीत ही जीत चाहिए…ये कैसा दंभ है PRAKRITI DARSHAN बहुत हुआ सबकुछ अब तक, बेशक तुम्हें पराजित होना पसंद नहीं है, हार स्वीकार नहीं है लेकिन ये सब तब ही तो संभव हो पाएगा...
मां कैसे छू लिया करती थी नब्ज PRAKRITI DARSHAN मैं नहीं जानता कि जब हम बच्चे थे तब मां कैसे देख लिया करती थी हमारी हाथ की नब्ज में बुखार और उसकी हरारत को।...
मत बनाईये भावनाओं का मरुस्थल PRAKRITI DARSHAN चीखेंं सुनिये, रुदन सुनिये, सुर्ख और सूजन से थकी आंखों को गौर से देखिये कितने सवाल हैं, कितना शोर है इनमें, ये दहक रही हैं,...
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो…. PRAKRITI DARSHAN हम तो जी भारतीय हैं और हमें तो बातें करना वैसे भी बहुत पसंद है लेकिन हम दायरे भी जानते हैं कि कौन सी बात...
कई मोर्चों पर लड़ता आदमी PRAKRITI DARSHAN ये वह दौर है जब एक सामान्य आदमी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है, जूझ रहा है, खुद ही उलझ और सुलझ रहा...
खौफनाक अंत की ओर ले जा रहा है प्लास्टिक PRAKRITI DARSHAN सुविधाभोगी हम ये नहीं समझने को तैयार हैं कि जिस प्लास्टिक को हमने अपने जीवन को आसान बनाने का साधन मान लिया है वह धरती...
अब हम बाजारू पानीदार हैं…! PRAKRITI DARSHAN हमारे संसार में पानी के बाद हवा भी बिकने लगी, पानी का कारोबार पूरी तरह से स्थापित और सफलता पा चुका है, इसके लिए बाज़ार...