भारत में प्रवासी पक्षियों का आगमन
सर्दियों के आते ही प्रतिवर्ष भारत में प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है, यह पक्षी यहां काफी समय बिताते हैं, हजारों किमी की यात्रा कर यह पक्षी भारत पहुंचते हैं। इन सर्दियों भी देश के विभिन्न हिस्सों में पक्षियों के पहुंचने का क्रम जारी है, इनका आगमन नवंबर माह से आरंभ हो जाता है, देश की प्रमुख झीलों और तालाबां के किनारे यह पक्षी अपना प्रवास करते हैं और गर्मियों आरंभ होने के पहले वे यहां से लौट जाते हैं। ये प्रवासी पक्षी प्रमुख तौर पर भारत आते हैं और आकर्षण का केंद्र बनते हैं। साइबेरियन क्रेन को ‘स्नो क्रेन’ के रूप में भी जाना जाता है। वे प्रवासी पक्षियों की गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियां हैं। साथ ही वे सारस की दुनिया की तीसरी सबसे लुप्तप्राय प्रजाति हैं। साइबेरियन क्रेन की कुल आबादी 3,800 पक्षियों की अनुमानित है। ग्रेटर फ्लेमिंगो फ्लेमिंगो परिवार की सभी प्रजातियों में सबसे बड़ा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। संभवत: यह दुनियाका एकमात्र लंबी गुलाबी टांगों वाला पक्षी हो सकता है। Demoiselle Crane भारतीय उपमहाद्वीप में हर साल सर्दियां बिताने के लिए आती है। Demoiselle Crane प्रजाति में मिस क्रेन सबसे छोटी प्रजाति है, जो विभिन्न प्रकार के वातावरण में रहती हैं। ये ज्यादातर राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाती है।
खोती जा रही है उपजाऊ मिट्टी की नमी
पराली जलाने के कारण पंजाब एक अजीबोगरीब संकट में उलझता जा रहा है, दरअसल पंजाब में पराली जलाए जाने के कारण वहां की मिट्टी की नमी सूखती जा रही है और यही कारण है कि इसे लेकर चिंता व्यक्त भी जा रही है, पिछले दिनों इसे लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। हम सभी जानते हैं कि पंजाब की पहचान वहां की खेती और फसलों की पैदावार से है। पंजाब की मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, जल संसाधनों का वहां की कृषि में महत्व सभी जानते हैं और पंजाब की पैदावार देश के विभिन्न हिस्सों के लिए भी क्या मायने रखती है यह सभी समझते हैं लेकिन पराली की समस्या से यहां यहां की मिट्टी नमी को लेकर सवाल उठने लगे हैं। पराली की समस्या दिल्ली सहित संपूर्ण एनसीआर के लिए गहरी चिंता का विषय है और प्रत्येक वर्ष इसी कारण प्रदूषण का स्तर कई गुना अधिक हो जाता है।
चरम मौसम घटनाओं से होने वाली हानि व क्षति के लिए एक कोष पर सहमति बनी
दुबई में कॉप28 जलवायु सम्मेलन
हाल ही में दुबई में कॉप28 जलवायु सम्मेलन के दौरान एक बेहद महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि चरम मौसम घटनाओं से होने वाली हानि व क्षति के लिए एक कोष को संचालित करने पर सहमति बनी। इस हानि व क्षति कोष का लक्ष्य, जलवायु संकट के अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहे देशों व समुदायों तक सहायता पहुँचाना है। यह कोष अनेक मायनों में अहम है, इससे निश्चित ही उन देशों के लिए राहत मिलेगी जो इस तरह के संकट को लगातार झेल रहे हैं, इस तरह की शुरुआत बेहतर हो सकती है क्योंकि राहत के साथ ही पर्यावरण सुधार की ओर भी हम इस तरह समग्र अग्रसर हो सकते हैं।